Tuesday, May 13, 2008

यथार्थ

फ़िर उन्ही रास्तों पे खड़ा पाता हूँ ख़ुद को ,

जहाँ से चलना शुरू किया था ,

नई मंजिलें तलाशी थी ;सोचा था -चलो एक बानगी इन्हे भी तय किया जाए ,

नयापन तय किया ;और सामने आए फ़िर वही जाने -पहचाने से रास्ते ।

ये जो Confusion है ,अब थोड़ा परिपक्वा हो गया है ,

परिभाषाएं भी पहले से सटीक सी लगती हैं ,

पर है तो अभी भी वही ।

The Shining का वो पार्क याद आता है ,

जिसे मैं अपने रास्तों के नजदीक पाता हूँ ,

एक बानगी थोड़ा ऊपर से view किया ,

तो पाया ;वहीं तो हैं -जहाँ से चले थे ।

याद रखने के लिए कोई sign तो बनाया नही था ,

हर चौराहा ही तो वही पुराना सा लगता है ,

अगला चौराहा दूद्ना है ,

फ़िर से ऊपर जाता हूँ ।