Sunday, March 7, 2010

एक अधूरा विचार...

उस शून्य समूह ब्रह्मांड में,
महानाद हुंकार हुआ ।
पृथ्वी की निष्पत्ति हुई ,
कण-कण की उत्पत्ति हुई।
ईश्वर का उद्देश्य सफल हुआ,
माया का जाल सकल हुआ।
ऐसे ही वातावरण में प्राणवायु का स्त्राव हुआ,
जीवन पनपा-लघुजीव हुए, माया का आविर्भाव हुआ।
वह था अतुलित बल-बुद्धि का स्वामी,
सब जड़-चेतन थे उसके अनुगामी।
उसने था धरती को तोडा, (The coming 4 lines have been taken from elsewhere, including this)
उसने था पहाड़ों को निचोड़ा,
उसने था धरती को अम्बर से जोड़ा,
उसने था नदियों के मुख को मोड़ा।
उसके इन महान कार्यों ने उसको था गर्वान्वित किया,
पाप बढे-व्यभिचार बढे, प्रेम-दया का नाश हुआ।